श्रीमंिमश्रबलभद्रविरचित
व्याख्याकार: डॉ मुरलीधर चतुर्वेदी
भारतीय ज्योतिषशास्त्र तीन भागों में विभाजित है: (१) सिद्धांत (२) संहिता (३) होरा इनमे होरा का विशेष महत्व है, क्योंकि इसके आधार पर वार-गणना की जाती है तथा अहोरात्न के बारह लग्नो का और उनके आधार पर मनुष्यो के शुभाशुभ का ज्ञान होता है।
होरारत्त्न के दस अध्याय है। जो यहाँ पर पाँच - पॉँच अध्यायों में पहली बार हिंदी अनुवाद के साथ दो भागो में प्रस्तुत है।
प्रथम अध्याय में राशियों और ग्रहोंकी संज्ञा, स्वरूप, बलाबल और फल का भिन्न भिन्न रीतियों से विवेचन किया गया है।
द्वितीय अध्याय :में जातक के जन्मकाल में विविध योगो का निरूपण एवं अशुभ योग की शांति के उपाय कहे गए है। साथ ही होरचक्र, उसमे अभिजीत गणना का विचार, जन्मपत्री लिखने का कर्म, प्रभव् आदि संवत्सरो के फल,पंच्चाग षड्वर्ग, गण आदि के फल, डिम्भचक्र: एवं उसके फल का विवेचन है।
तृतीय अध्याय मैं भावो की आवश्यकता, उनका आनयन, भावस्थ ग्रहो का फल, हिल्लाज के अनुसार भावफल, ग्रहचेस्टाओ एवं भावचेस्टाओ का विचार
अवस्था, ज्ञान, पज्ज्म, सप्तम और दशम भाव के ग्रहो की अवस्था का फल, १२ राशियों में स्थित सूर्यादि ग्रहो का और उन पर ग्रहो की द्रष्टि का फल कहा गया है।
चतुर्थ अध्याय में राशिस्थ ग्रहो तथा सूर्यादि ग्रहो का फल, उच्च नीच मित्र, शत्रु, आदि में स्थित ग्रहो का फल वर्णित है.
पंचम अध्याय में अरिष्ठविवेचन, आयुयोग,पितृ-मातृ-कष्टप्रद योगो का वर्णन के फल
छठे अध्याय में नाभस योगो के अतिरिक्त सर्प, दारिद्र्य, रोग, क्रय-विक्रय, चित्र, वाद्य-वादन, भैष्ण्य, सूतक कर्म तथा भिक्षुक योगो का वर्णन है.
सातवे अध्याय में बारह भावो के फल का विवेचन है.
आठवे अध्यायमें बारह राशियों में चन्द्रमा का तथा चन्द्रमा से बारह भावो में ग्रहो का फल वर्णित है।
नवम् अध्याय मैं आयुचिंता, दशारिष्ट दशा-महादशा का फल वर्णित है।
दशम् अध्याय मैं स्त्रीजन्म के शुभाशुभयोग एवं स्त्रीकुण्डली मैं राजयोग का वर्णन किया गया है.