Pluto (Chhoti Chhoti Nazme) by Gulzar यशस्वी व लोकप्रिय शायर गुलज़ार साहिब के नये काव्य-संकलन ‘प्लूटो’ में जीवन के छोटे-छोटे लम्हों को मोतियों की तरह पिरोया गया है। ‘प्लूटो’ की नज़्में गुलज़ार की अभिवयक्ति को सबके समक्ष लाती हैं और नक्काशी हुई मूर्तियों की तरह ज़ेहन में उतरती हैं जिन्हें मूर्तिकार घंटों बैठकर अपनी कल्पना की उड़ानों से तराशता है। प्लूटो’ से प्लेनेट का रुतबा तो हाल ही में छिना है। साईंसदानों ने कह दिया - “जाओ... हम तुम्हें अपने नौ ग्रहों में नहीं गिनते... तुम प्लेनेट... के नहीं हो!” मेरा रुतबा तो बहुत पहले ही छिन गया था, जब घरवालों ने कह दिया - “बिजनेस फ़ैमली में ये ‘मीरासी’ कहाँ से आ गया!” ख़ामोशी कहती थी - तुम हम में से नहीं नहीं हो! अब ‘प्लूटो’ की उदासी देखकर, मेरा जी बैठ जाता है। बहुत दूर है... बहुत छोटा है... मेरे पास जितनी छोटी-छोटी नज़्में थीं। सब उसके नाम कर दीं। बहुत से लम्हे छोटे, बहुत छोटे होते हैं। अक्सर खो जाते हैं। मुझे शौक़ है उन्हें जमा करने का। मौज़ू के ऐतबार से, इस मजमूए में बहुत सी नज़्में ग़ैर-रिवायती हैं... लेकिन वो क्या बुरी बात है? गुलज़ार