सार्थक जीवन जीने की कला
Sarthak Jeevan Jeene Ki Kala लगभग आधी सदी का परिदृश्य हमारे सामने है। इस बीच भारतीय जीवनशैली में तेजी से बदलाव आया है। उपभोक्ता संस्कृति और बाजारवाद ने लोगों के जीवन को ही मूल्यहीन बना दिया है। पश्चिम से आयातित सभ्यता और संस्कृति के अंधानुकरण ने भारतीय मूल्यों और परंपराओं को क्षतिग्रस्त कर दिया है। हर कोई उधार की जिंदगी जी रहा है। उसकी स्थिति त्रिशंकु की तरह हो गई है। आइए बेहतर और उन्नतिशील जीवन जीने की कला में पारंगत हो जाएं। सवर्प्रथम पुस्तक के आरंभ में दी गई जांच प्रश्नोत्तरी आपको यह पहचान कराएगी कि वास्तव में आपमें कितनी कमियां और कमजोरियां हैं। इतना पता चलने के बाद आप पुस्तक के सभी अध्यायों को पढ़ लें। यह एक ऐसी प्रयोगशाला साबित होगी, जो आपमें संपूर्ण सुधार करके जीवन जीने का तरीका सिखाएगी। इस पुस्तक का उद्देश्य आपकी सोच और आपके जीवन को सार्थक बनाना है।