Shrimadbhagvadgitarahasya Athva Karmayogshastra
श्रीमद भगवद्गीतारहस्य
अथवा
कर्मयोगशास्त्र
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
श्रीमद्भागवद्गीतारहस्य हिन्दू धर्मग्रंथोमें आत्मविद्या के गूढ़ तत्वों को स्पष्ट रीती से समझा देने वाला ऐसा अद्भुत ग्रन्थ है, जिसकी तुलना का दूसरा कोई ग्रन्थ संसार-भर में नहीं मिल शकता l
यदि कोई काव्य की दृष्टी से भी इसकी परीक्षा की जाये, तो भी उसे उत्तम ग्रन्थों में ही गिना जायेगा l इस ग्रंथरत्न में वैदिक धर्मं का सार संग्रहीत किया गया है l यही है वह ग्रन्थ, जो लगभग हजार वर्षो से प्रमाणस्वरूप सर्वसामान्य रहा है l
अर्जुन की कर्तव्यमूढ़ता को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था, उसी के आधार पर व्यासजी ने उस रहस्य का प्रतिपादन श्रीमद्भागवद्गीतामें किया है और उसी का मराठी में अनुवाद एवं टिका श्रीबाल गंगाधर तिलक ने अपनी मंडाले जेलयात्रा के दौरान 'श्रीमद भगवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र का विवेचन श्रीमद्भागवद्गीतामें किया गया है, उसे प्रत्येक व्यक्ति सीखे और समझे l
कर्मण्येवधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन l
मा कर्मफलहेतुभूर्मा ते संगोडस्तवकर्मणि ll
इस शलोक में भगवान ने अर्जुन को यही समझाया है की तुझे केवल कर्म करने का अधिकार है l कर्म- फल के विषय में तेरा कोई अधिकार नहीं है, वह ईश्वर पर अवलंबित है l
'श्रीमद्भागवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र' के अंत में अनुवाद के साथ ही श्रीमद्भागवद्गीता के मूल शलोक भी दे दिए गए है, ताकि संस्कृत जानने वाले व्यक्ति गीता के शलोको का रसास्वादन कर सकें l
|