Siddhartha (Hindi Edition) by Hermann Hesse सिद्धार्थ - हरमन हेस ‘सिद्धार्थ’ उपन्यास आज के विषण्णमना मानव के लिए समस्त सनातन प्रश्नों का उद्घाटन करता है जो कि उसके मानस को झकझोर कर चेतन तत्व से भर देते हैं मूल रूप से स्विस भाषा में लिखित इस उपन्यास के लेखक को 1946 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वास्तव में इस शताब्दी में प्रणीत ऐसी थोड़ी-सी पुस्तकें हैं जिन्हें साश्वत साहित्य की कोटि में रखा जा सके। इस उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते पाठक की अन्तर्दृष्टि जागरुक हो उठती है और उसके ज्ञानचक्षु खुल जाते हैं। सिद्धार्थ एक प्रकाश स्तंभ के समान मनुष्यों की जीवन-दशा को स्थिर रखने में सहायक सिद्ध हो सकेगा, ऐसा विश्वास है। यह उपन्यास उस कोटि की साहित्यिक कृति है जो अनेक राजनीतिक मतवाद, प्रत्येक सामाजिक विधान, अर्थतंत्र अथवा संस्कृति के ढांचे पर कसी जाकर अपनी प्रेरक बोध-शक्ति लेशमात्र भी नहीं खोती और उपन्यास का नायक सिद्धार्थ जीवन की अनेक स्थितियों से गुजरता हुआ उस अवस्था को प्राप्त करता है जिसे दार्शनिकों की भाषा में स्थित प्रश्न कहा जाता है। उपन्यासकार हरमन हेस ने इस उपन्यास में पूर्व और पश्चिम की आध्यात्मिकता का अपूर्व समागम किया है। इस उपन्यास में भारतीय वेदान्त को जीवन के सच्चे जीवन-दर्शन के रूप में अंगीकार किया गया है। उपन्यास की भाषा सरल और भावप्रण है। कला और भाव पक्ष-दोनों का इस उपन्यास में अपूर्व सम्मिश्रण किया गया है।