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Vaishali Ki Nagarvadhu
Acharya Chatursen
Author Acharya Chatursen
Publisher Hind Pocket Books Pvt. Ltd.
ISBN 9788121614740
No. Of Pages 345
Edition 2017
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 295.00
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Description

वैशाली की नगरवधू' - एक क्लासिक उपन्यास - आचार्य चतुरसेन शास्त्री

Vaishali Ki Nagarvadhu by Acharya Chatursen

'वैशाली की नगरवधू' एक क्लासिक उपन्यास है जिसकी गणना हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जाती है। 'वैशाली की नगरवधू' में आज से ढ़ाई हज़ार वर्ष पूर्व के भारतीय जीवन का एक जीता-जागता चित्र अंकित हैं। उपन्यास का मुख्य चरित्र है-स्वाभिमान और दर्प की साक्षात् मूर्ति, लोक-सुन्दरी अम्बपाली, जिसे बलात् वेश्या घोषित कर दिया गया था, और जो आधी शताब्दी तक अपने युग के समस्त भारत के सम्पूर्ण राजनीतिक और सामाजिक जीवन का केन्द्र-बिन्दु बनी रही।
उपन्यास में मानव-मन की कोमलतम भावनाओं का बड़ा हृदयहारी चित्रण हुआ है। यह श्रेष्ठ रचना अब अपने अभिनव रूप में प्रस्तुत करता है।

बुद्ध अपने एक प्रवास में वैशाली आये. कहते हैं कि उनके साथ दस हज़ार शिष्य भी हमेशा साथ रहते थे. सभी शिष्य प्रतिदिन वैशाली की गलियों में भिक्षा मांगने जाते थे. वैशाली में ही आम्रपाली का महल भी था. वह वैशाली की सबसे सुन्दर स्त्री और नगरवधू थी. वह वैशाली के राजा, राजकुमारों, और सबसे धनी और शक्तिशाली व्यक्तियों का मनोरंजन करती थी. एक दिन उसके द्वार पर भी एक भिक्षुक भिक्षा मांगने के लिए आया. उस भिक्षुक को देखते ही वह उसके प्रेम में पड़ गयी. वह प्रतिदिन ही राजा और राजकुमारों को देखती थी पर मात्र एक भिक्षापात्र लिए हुए उस भिक्षुक में उसे अनुपम गरिमा और सौंदर्य दिखाई दिया. वह अपने परकोटे से भागी आई और भिक्षुक से बोली – “आइये, कृपया मेरा दान गृहण करें”.
उस भिक्षुक के पीछे और भी कई भिक्षुक थे. उन सभी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ. जब युवक भिक्षु आम्रपाली की भवन में भिक्षा लेने के लिए गया तो वे ईर्ष्या और क्रोध से जल उठे. भिक्षा देने के बाद आम्रपाली ने युवक भिक्षु से कहा – “तीन दिनों के बाद वर्षाकाल प्रारंभ होनेवाला है. मैं चाहती हूँ कि आप उस अवधि में मेरे महल में ही रहें.”
युवक भिक्षु ने कहा – “मुझे इसके लिए अपने स्वामी तथागत बुद्ध से अनुमति लेनी होगी. यदि वे अनुमति देंगे तो मैं यहाँ रुक जाऊँगा.”

उसके बाहर निकलने पर अन्य भिक्षुओं ने उससे बात की. उसने आम्रपाली के निवेदन के बारे में बताया. यह सुनकर सभी भिक्षु बड़े क्रोधित हो गए. वे तो एक दिन के लिए ही इतने ईर्ष्यालु हो गए थे और यहाँ तो पूरे चार महीनों की योजना बन रही थी! युवक भिक्षु के बुद्ध के पास पहुँचने से पहले ही कई भिक्षु वहां पहुँच गए और उन्होंने इस वृत्तांत को बढ़ा-चढ़ाकर सुनाया – “वह स्त्री वैश्या है और एक भिक्षु वहां पूरे चार महीनों तक कैसे रह सकता है!?”
बुद्ध ने कहा – “शांत रहो. उसे आने दो. अभी उसने रुकने का निश्चय नहीं किया है. वह वहां तभी रुकेगा जब मैं उसे अनुमति दूंगा.”

युवक भिक्षु आया और उसने बुद्ध के चरण छूकर सारी बात बताई – “आम्रपाली यहाँ की नगरवधू है. उसने मुझे चातुर्मास में अपने महल में रहने के लिए कहा है. सारे भिक्षु किसी-न-किसी के घर में रहेंगे. मैंने उसे कहा है कि आपकी अनुमति मिलने के बाद ही मैं वहां रह सकता हूँ.”

बुद्ध ने उसकी आँखों में देखा और कहा – “तुम वहां रह सकते हो.”

यह सुनकर कई भिक्षुओं को बहुत बड़ा आघात पहुंचा. वे सभी इसपर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि बुद्ध ने एक युवक शिष्य को एक वैश्या के घर में चार मास तक रहने के लिए अनुमति दे दी. तीन दिनों के बाद युवक भिक्षु आम्रपाली के महल में रहने के लिए चला गया. अन्य भिक्षु नगर में चल रही बातें बुद्ध को सुनाने लगे – “सारे नगर में एक ही चर्चा हो रही है कि एक युवक भिक्षु आम्रपाली के महल में चार महीनों तक रहेगा!”

बुद्ध ने कहा – “तुम सब अपनी चर्या का पालन करो. मुझे अपने शिष्य पर विश्वास है. मैंने उसकी आँखों में देखा है कि उसके मन में अब कोई इच्छाएं नहीं हैं. यदि मैं उसे अनुमति न भी देता तो भी उसे बुरा नहीं लगता. मैंने उसे अनुमति दी और वह चला गया. मुझे उसके ध्यान और संयम पर विश्वास है. तुम सभी इतने व्यग्र और चिंतित क्यों हो रहे हो? यदि उसका धम्म अटल है तो आम्रपाली भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी. और यदि उसका धम्म निर्बल है तो वह आम्रपाली के सामने समर्पण कर देगा. यह तो भिक्षु के लिए परीक्षण का समय है. बस चार महीनों तक प्रतीक्षा कर लो. मुझे उसपर पूर्ण विश्वास है. वह मेरे विश्वास पर खरा उतरेगा.”

उनमें से कई भिक्षुओं को बुद्ध की बात पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने सोचा – “वे उसपर नाहक ही इतना भरोसा करते हैं. भिक्षु अभी युवक है और आम्रपाली बहुत सुन्दर है. वे भिक्षु संघ की प्रतिष्ठा को खतरे में डाल रहे हैं.” – लेकिन वे कुछ कर भी नहीं सकते थे.

चार महीनों के बाद युवक भिक्षु विहार लौट आया और उसके पीछे-पीछे आम्रपाली भी बुद्ध के पास आई. आम्रपाली ने बुद्ध से भिक्षुणी संघ में प्रवेश देने की आज्ञा माँगी. उसने कहा – “मैंने आपके भिक्षु को अपनी ओर खींचने के हर संभव प्रयास किये पर मैं हार गयी. उसके आचरण ने मुझे यह मानने पर विवश कर दिया कि आपके चरणों में ही सत्य और मुक्ति का मार्ग है. मैं अपनी समस्त सम्पदा भिक्षु संघ के लिए दान में देती हूँ.”

आम्रपाली के महल और उपवनों को चातुर्मास में सभी भिक्षुओं के रहने के लिए उपयोग में लिया जाने लगा. वह बुद्ध के संघ में सबसे प्रतिष्ठित भिक्षुणियों में से एक थी.

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