महात्मा का इंतज़ार
आर. के. नारायण
महात्मा गांधी और उनके राष्ट्रीय आंदोलन की कहानी के साथ यह दो युवा दिलों की प्रेम कहानी है। दोनों को अपनी-अपनी मंज़िल की तलाश है। दोनों प्रेमी अपनी चाहत को तब तक दबाए रखते हैं जब तक स्वतंत्रता के लिए चलने वाला संघर्ष पूरा नहीं हो जाता और उन्हें एक-दूसरे को अपनाने के लिए महात्मा गांधी की स्वीकृति नहीं मिल जाती। वर्षों चले इस इंतज़ार में उन्हें किन-किन मुसीबतों और ज़ोखिमों से होकर गुज़रना पड़ता है, इसका बेहद रोमांचक वर्णन करता है यह उपन्यास।
आर.के. नारायण की अनोखी शैली में लिखा यह बेहद रोचक उपन्यास उनके बाकी उपन्यासों से हटकर है।
महात्मा का इंतजार, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी एक प्रेमकथा है। एक ओर पूरा देश अंग्रेज़ों को भारत से खदेड़ने के लिए कमर कसे है, तो दूसरी ओर युवा क्रांतिकारियों, श्रीराम और भारती के बीच प्रेम परवान चढ़ रहा है। दोनों एक-दूसरे से शिद्दत से प्यार करते हैं, लेकिन उसे तब तक विवाह का रूप नहीं देना चाहते जब तक देश को आज़ाद करवाने का उनका सपना पूरा नहीं हो जाता। महात्मा गांधी उनके आदर्श हैं और अपने रिश्ते को वे उनकी रज़ामंदी से ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। आर. के. नारायण के इस उपन्यास में आज़ादी के संघर्ष और श्रीराम-भारती की इसी प्रेमकहानी को बहुत रोचक और मार्मिक तरीके से गूंथा गया है।
आर. के. नारायण भारत के पहले ऐसे लेखक थे जिनके अंग्रेज़ी लेखन को विश्वभर में प्रसिद्धि मिली। काल्पनिक शहर मालगुड़ी के इर्द-गिर्द बुनी उनकी कहानियां अमर हैं। 10 अक्टूबर 1906 को जन्मे नारायण ने पंद्रह उपन्यास, पाँच लघु कथा-संग्रह, यात्रा-वृतांत आदि लिखे हैं। 1960 में उन्हें उनके उपन्यास गाइड के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। मालगुडी की कहानियां, स्वामी और उसके दोस्त, डार्क रूम, मालगुडी का आदमखोर और इंग्लिश टीचर उनकी अन्य जानी-मानी रचनाएँ हैं। 13 मई, 2001 को नारायण की मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी रचनाएं पाठकों के दिलों में आज भी ज़िंदा हैं।
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