कालसर्प योग शांति और घाट विवाह पर शोधकार्य फलित ज्योतिष में कालसर्प योग को गंभीर रूप से मृत्युकारी माना गया है। सामान्यत जन्म कुंडली में जब सारे ग्रह राहु केतु के बीच कैद हो जाते हैं तो काल सर्पयोग की स्थिति बनती है। जो मृत्यु कारक है या दूसरे ग्रहों के सुप्रभाव से मृत्यु न हो तो मृत्युतुल्य कष्टों का कारण बनती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु सर्प का मुख है और केतु सर्प की पूंछ। ग्रहों की स्थतियों के अनुसार कुल 62208 प्रकार के कालसर्प योग गिने जाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में पंडित भोजराज द्विवेदी ने इन विविध कालसर्प योगों के विषय में विस्तार से चर्चा की है और कालसर्प शांति के विषय में भी उपाय बताए हैं। पुस्तक में विशिष्ट स्थितियों को दर्शाती हुई अनेकों महान विभूतियों की कुंडलियां भी दी गई है, जिनकी जीवन परिणति सर्वविदित है। भोजराज द्विवेदी द्वारा विचरित 'कालसर्प योग शांति एवं घट-विवाह पर शोधकार्य' शीर्षक पुस्तक का यह नवीन संस्करण निश्चित रूप से कालसर्पयोग से संबंधित भ्रांतियों को दूर करेगा। सर्पों से मैत्री भाव स्थापित करना, उनकी पूजा से अनंत ऐश्वर्य और मनोवांछित आशीर्वाद प्राप्त करना ही भारतीय संस्कृति की विशेषता है। इस रहस्य को इस पुस्तक में विस्तार से समझाया गया है। प्रबुद्ध पाठकों के अनेक पत्रों में वर्णित समस्याओं तथा शंकाओं से संबंधित कई प्रस्तावना इस नए संस्करण में दी गई हैं इसके साथ कालसर्प योग में जन्में प्रसिद्ध लोगों की कुंडलियों का विश्लेषण भी प्रबुद्ध पाठकों हेतु इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। साथ ही कुछ आवश्यक संस्कृत श्लोकों का हिंदी में अनुवाद, अनेक महत्वपूर्ण शंकाओं का हल इस पुस्तक में नई प्राण-शक्ति संचरित कर रहा है।