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Kalsarpa Yog Shodh Sangyan
Mrudula Trivedi
Author Mrudula Trivedi
Publisher Motilal Banarasidas Prakashan
ISBN 9788120831339
No. Of Pages 730
Edition 2014
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 495.00
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Description

Kalsarpa Yog Shodh Sangyan by Mrudula Trivedi

कालसर्पयोग शोध-संज्ञान


कालसर्प योग का नाम ही अतीव आतंक, अनायास अभाव, अन्यान्य अवरोध और असीम अनिष्ट, दुर्दमनीय दारुण दुःखों तथा दुर्भाग्यपूर्ण दुर्भिक्ष का पर्याय बन गया है जो नितान्त भ्रामक, असत्य तथ्यों एवं अनर्गल वक्तव्यों पर आधारित है कालसर्प योग का नाम मात्र ही हृदय को अप्रत्याशित भ्रम, भय, ह्रास व विनाश के आभास से व्यथित, चिन्तित व आतंकित कर देता है। तथाकथित ज्योतिर्विदों ने ही कालसर्प योग के विषय में अनन्त भ्रांतियाँ उत्पन्न करके, एक अक्षम्य अपराध किया है। किसी जन्मांग के कालसर्प योग की उपस्थिति का ज्ञान ही हृदय को अनगिनत आशंकाओं, अवरोधों और अनिष्टकारी स्थितियों के आभास से प्रकंपित और विचलित कर देता है। इस विषय में अज्ञानता के अन्धकार ने मार्ग में पड़ी रस्सी को विषैले सर्प का स्वरूप प्रदान कर दिया है।

कालसर्प : शोध संज्ञान, उन सशक्त सारस्वत शाश्वत संकल्पों का साकार स्वरूप है जो इस परम रहस्यमय योग के फलाफल के विषय में अपेक्षित, प्रामाणिक तथा शास्त्रसंगत सघन सामग्री के प्रचुर अभाव के कारण अंकुरित हुए थे। कालसर्प योग से सम्बन्धित मिथ्याधारणा, भ्रम और भ्रांति को निर्मूल करके, वास्तविकता से अवगत कराने का गहन शोधपरक प्रयास है ‘कालसर्प योग : शोध संज्ञान’।

कालसर्प योग के ज्योतिषीय ग्रह योग एवं उसके बहुआयामी परिणाम परिहार परिकर के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक विश्लेषण द्वारा अन्तर्विरोधों और प्रस्फुटित सूत्रों से आक्रान्त ‘‘कालसर्प योग : शोध संज्ञान’’ समस्त संभावित बिन्दुओं का स्पर्श कर रहा है। सतर्क चिन्तन एवं गंभीर अध्ययन के माध्यम से कालसर्प योग कृत अवरोध तथा सम्यक् शोध के उपरान्त शास्त्रगर्भित वेदविहित तथा आचार्य अभिशंसित मंत्रों, स्त्रोतों के विधि—सम्मत अनुष्ठान द्वारा कालसर्प योग का परिशमन संभव है।

कालसर्प योग से आक्रान्त अनेक व्यक्तियों को तथाकथित ज्योतिर्विदों द्वारा व्यथित, भ्रमित तथा भयभीत करके, ज्योतिष ज्ञान को अस्त्र बनाकर, उनकी आस्था और विश्वास पर बार-बार कुठाराघात किया जता है। उनका भय ही उनके आर्थिक दोहन का मार्ग प्रशस्त कर देता है। पाप प्रेरित एवं पाप कृत्यों में संलग्न पथभ्रष्ट आचार्य, धन-लोलुपता के कारण स्वयं को ही पतन का ग्रास बना लेते हैं। कालसर्प योग के मिथ्या स्वरूप और भ्रान्तियुक्त व्यथा के कारण बार-बार अंकुरित होने वाली हमारी असहनीय वेदना ही ‘कालसर्प योग : शोध संज्ञान’ की रचना का निमित्त बनी।

हमारा धैर्य तब खण्डित हो गया, जब कालसर्प योग की व्यथा से आतंकित अनेक व्यक्ति परामर्श हेतु हमारे पास आये एवं उन्होंने रुदनयु्क्त कण्ठ से अपनी शंका का समाधान जानने की जिज्ञासा प्रकट की। हम यह देखकर स्तब्ध रह गये कि उनमें से अधिकतर जन्मांगों में कालसर्प योग की संरचना हुई ही नहीं थी और मिथ्या भय ने उनके नेत्रों में अश्रु भर दिये थे। हमारा मन कालसर्प योग से पीड़ित जातक—जातिकाओं के हृदय में व्याप्त भय और भ्रम के कारण कराह उठा, जिसने हमें ‘कालसर्प योग : शोध संज्ञान’ की रचना हेतु विवश कर दिया।

राहु केतु की धुरी के एक ओर शेष सातों ग्रहों की स्थिति, कालसर्प योग की संरचना करती है, मात्र इतना ही हमें ज्ञात है। कितना अपूर्ण और भ्रामक है, ‘कालसर्प योग’ के विषय में यह अपूर्ण और अल्प ज्ञान ? किन परिस्थितियों में ‘कालसर्प योग’ प्रभावहीन होता है और कब प्रभावी होकर जीवन के मधुमास को संत्रास में परिवर्तित कर देता है। किन ग्रह योगों के कारण स्पष्ट कालसर्प योग का सुखद आभास जीवन पथ को आन्दोलित करता है और किन ग्रह योगों के अभाव में वही कालसर्प योग समस्त सुख-सुविधा, सरसता, सम्मान, समृद्धि, सफलता और सुयश को प्रकम्पित कर देता है। यह शोध संज्ञान ही इस रचना का आधार बिन्दु है। अज्ञानता के कारण हृदय में व्याप्त आतंक को निश्चेष्ट करने के उद्देश्य से कालसर्प योग युक्त सहस्रों जन्मांगों के अध्ययन, अनुभव, अनुसंधान ने इस रचना में उद्घाटित शोध को जन्म दिया।

‘कालसर्प योग : शोध संज्ञान’ पाँच खण्डों में विभाजित है—
1.    कालसर्प योग : सृजन संज्ञान –(सिद्धान्त खण्ड)
2.    कालसर्प योग : परिहार परिज्ञान –(समाधान खण्ड)
3.    कालसर्प योग : अनुष्ठान विधान –(शान्ति विधान खण्ड)
4.    कालसर्प योग : मंत्र मंथन –(नवग्रह परिहार खण्ड)
5.    कालसर्प योग : अभीष्ट प्राप्ति : --(विस्तृत मन्त्र मीमांसा खण्ड) विविध विधान
इन पाँच खण्डों में समाहित विषय वस्तु का उल्लेख अत्यन्त संक्षेप में अग्रांकित है।

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