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Lopamudra
Kanaiyalal Munshi
Author Kanaiyalal Munshi
Publisher Rajkamal Prakashan
ISBN 9788126702671
No. Of Pages 300
Edition 2013
Format Paperback
Language Hindi
Price रु 95.00
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Description

लोपामुद्रा : उपन्यास

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

'आर्यावर्त की महागाथा' के नाम से कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने तीन खंडों में वैदिककालीन संस्कृति के धुंधले के इतिहास को सुस्पष्ट करने का प्रयास किया है। उपन्यास लोपामुद्रा -'आर्यावर्त की महागाथा' का पहला खंड है। इसमें वैदिक सभ्यता और संस्कृति का बहुत ही सुंदर चित्रण है।

पुस्तक-अंश
लड़कों के आनंद-किलोल का पार न था। सारा आश्रम इस तरह यात्रा के लिए निकले, यह अनुभव जितना नया था, इतना ही आनंदप्रद था। कोई तैरता, कोई डुबकी मारता, कोई कीचड़ फेंकता। सुदास और ऋक्ष अच्छी तरह तैरना जानते थे। वे तैरते-तैरते आगे बढ़ गए। विश्वरथ और जमदग्नि को तैरना अच्छा नहीं आता था, इससे छाती भर गहरे पानी में खड़े रहकर नहा और खेल रहे थे। पास ही में कुछेक आचार्य भी नहाते थे।
***
मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है, शांबरी। वह खिन्न होकर बोला। मुझे क्षमा कर। मैं उस जाति का हूँ जिसमें नौजवान लड़कियाँ पर‍जाति के अपरिचित व्यक्ति के साथ इस तरह नहीं बोलती, स्वजाति के परिचित युवकों के साथ भी नम्रता और संकोच से बरताव करती है, जिसका दिल नहीं मिला, वह इस प्रकार अपनी काम-विह्वल नहीं दिखाता। और जहाँ, उनकी पत्नियाँ भी पतियों के साथ बोलते समय संयम नहीं छोड़तीं। अब तक कुछ नहीं सूझता कि क्या करूँ?'
***
शाश्वत स्त्रीत्व का सत्व के समान विश्वरथ नजर हटा नहीं सकता। वर्ण, जाति के संस्कार का भेद शांबरी की दृष्टि ज्वाला में जलकर भस्म हो जाता है। जान्हु! जान्हु! मार मत डालो। आओ! आओ! हाथ बढ़ाकर राह देखने लगती है। उसकी आवाज में सिंह की सी प्रौढ़ गर्जन है। 'नहीं तो मुझको मार डालो।'

विश्वरथ के अंग-अंग से अग्नि की सी ज्वाला जल उठती है। शांबरी! आवाज नहीं निकलती। आओ... आओ।
वह सूर्य के घोड़े की तरह उछल पड़ता है और अपने सुदृढ़ बाहुपाश में आनंद से पागल हुई शांबरी को दबा लेता है। चुंबन की ध्वनि चारों ओर हवा में फैल जाती है।
***

समीक्षकीय टिप्पणी :
इस पुस्तक में ऋषि विश्वामित्र के जन्म और बाल्यकाल का वर्णन है। उनका अगस्त्य ऋषि के पास विद्याध्ययन, दस्युराज शम्बर द्वारा अपहरण, शम्बर कन्या उग्रा से प्रेम संबंध और इसके परिणामस्वरूप आर्य मात्र में विचार-संघर्ष, ऋषि लोपामुद्रा का आशीर्वाद और अंत में उनका राज्यत्याग इन सब घटनाओं को विद्वान लेखक ने अपनी विलक्षण प्रतिभा और कमनीय कल्पना के योग से अनुप्राणित किया है। मुंशीजी की अन्य सभी कृतियों की तरह यह पुस्तक भी अद्‍भुत एवं अतीव रसमय है।

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