Netrutva Ke Gur (Hindi Translation Of The Secret Of Leadership) by Prakash Iyer
नेतृत्व के गुर
प्रकाश अय्यर
इस दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो,जिसके मन में शिखर पर पहुंचने की इच्छा न होती हो? हर व्यक्ति का मन होता है कि वह जिस क्षेत्र में रुचि रखता है,उसके प्रमुख पद पर हो. राजनैतिक पार्टी का प्रमुख होना,किसी बड़ी कंपनी का नेतृत्व करना या टीम का अग्रणी बनना सभी को सुहाता है,लेकिन नेतृत्व की दमदार कला आती कैसे है? कैसे कुछ लोग बड़ी चुनौतियों को झेलते हुए बड़े से बड़े संगठन,कंपनी का नेतृत्व आसानी के साथ करते हैं? अगुआ में वह क्या गुण होते हैं, जो उसे औरों से भिन्न बनाते हैं? लेखक प्रकाश अय्यर की पुस्तक ‘नेतृत्व के गुर’ ऐसे ही सवालों का उत्तर है,जो बताती है कि कैसे कुछ प्रमुख लोग अपनी कड़ी मेहनत और लगन के चलते कहां से कहां पहुंच गये.
‘कभी हार न मानें. कभी नहीं,कभी हार न मानें!’ अध्याय में थॉमस जे.वॉटसन की एक सलाह, जो आज भी उतनी ही हृदय को छूती है, जितनी उस समय के लोगों को छुई थी. वॉटसन ने अपने उपाध्यक्ष को मूल्यवान सलाह देते हुए कहा ‘अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो अपनी हार की दर को दुगुना कर दें’ क्योंकि असफलता हमारे लिये मूल्यवान सीख लेकर आती है, लेकिन तभी जब हम सीखने के लिये पूरे मन से तैयार हों.
आज के दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं ,जो कार्यक्षेत्र में आने वाली कुछ ही समस्याओं से इतना परेशान हो जाते हैं कि उसके प्रति नकारात्मक सोच उत्पन्न कर लेते हैं और उसको छोड़ देते हैं,जिसका परिणाम होता है कि वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते और पूरे जीवन मन मसोस कर अपने भाग्य को ही कोसते रहते हैं. ऐसे लोगों को थॉमस अलवा एडिसन के एक किस्से को जानना चाहिये. थॉमस अल्वा एडिसन बल्ब के आविष्कार के लिये रात-दिन जागा करते थे. थॉमस इसी कार्य को पूरा करने के लिये पांच सौ बार प्रयोग कर चुके थे,लेकिन इसके बाद भी वह असफल साबित हुये. इसी समय एक पत्रकार ने उनका साक्षात्कार किया और पूछा ‘पांच सौ बार असफल होने पर कैसा महसूस होता है? आप हार क्यों नहीं मान लेते?’ एडिसन ने पलटकर जवाब दिया ‘कभी नहीं,मैं पांच सौ बार असफल नहीं हुआ हूं. मैंने तो सिर्फ उन पांच सौ तरीकों की खोज की है,जो कारगर नहीं हैं. मैं उस तरीके के बहुत ही नजदीक हूं, जो कारगर साबित होगा.’और ऐसा ही हुआ. एडिसन के तंतुयुक्त लाइट बल्ब के अविष्कार ने दुनिया को बदल दिया.
लेखक ने ऐसी ही एक प्रेरणादायी घटना ’500 रुपये का एक नोट और दो सीखें!’ का उल्लेख किया है, जिसमें एक गुरु ने 500 रु. का नोट निकालकर सभा में ऊपर उठाते हुए प्रश्न किया कि ‘इसकी कीमत क्या है?’ उत्तर आया पांच सौ रु.. वक्ता ने फिर उसी नोट को मोड़कर एक गेंद का आकार देकर पूछा कि अब इसकी कीमत क्या है,आवाज आई पांच सौ रु.. फिर उन्होंने उसी नोट को जमीन पर फेंका और उसे पैर मारने लगे और फिर भीड़ से पूछा अब इसका मूल्य क्या है,फिर एक ही स्वर से आवाज आई पांच सौ रु.. यहीं पर वक्ता ने एक प्रेरक बात कही कि नोट को किसी ने मरोड़ दिया,कुचल दिया लेकिन नोट का मूल्य नहीं घटा. हम सभी को भी ऐसे ही पांच सौ रु. के नोट जैसे होना चाहिये. हमारे जीवन में ऐसे समय आते हैं,जब हम कुचले हुए, पिटे या लाचार महसूस करते हैं,लेकिन इन सब के बाद भी हमें अपने मूल्य को,अपनी कद्र को खत्म नहीं होने देना है. सफलता के लिये सदैव याद रखें! जब आप अपने लक्ष्यों,अपने सपनों और अपनी महत्वाकांक्षाओं के पीछे भाग रहे होते हैं तो ऐसे लोगों की उपेक्षा करें, जो आपसे कहते हैं कि यह नहीं हो सकता. आलोचकों और प्रतिवाद करने वालों की बातों को अनसुना कर दें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें. अपने सपनों का पीछा करें. हार मान लेना आसान है क्योंकि अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिये कठिन परिश्रम करना पड़ता है.
पुस्तक के अन्दर प्रेरणादायक दृष्टांत वास्तव में हृदयस्पर्शी हैं. साथ ही सभी वर्गों को प्रेरणा भी देते हैं कि हम भी उच्च शिखर पर पहुंच सकते हैं, बशर्ते कार्य के प्रति उत्साह, भूख,अनुशासन की प्रवृत्ति हो.
बेस्ट सेलिंग लेखक प्रकाश अय्यर ने दुनिया भर से सीधे-सादे लेकिन सशक्त किस्सों और मिसालों का इस्तेमाल करते हुए यह दिखाने की कोशिश की है कि प्रभावी निजी व व्यवसायिक नेतृत्व कैसे बनता है। अय्यर को यह सीख अपने ड्राइवर, बच्चे वाली एक मादा जिराफ, अब्राहम लिंकन और ब्रिटेन के फुटबॉल खिलाड़ियों जैसे विभिन्न स्रोतों से मिलती है। वे दिखाते हैं कि कैसे आप नेतृत्व करने की कुदरती प्रवृत्ति फास्ट फूड चेन में बर्गर उछालते हुए भी प्राप्त कर सकते हैं। ये सारी कहानियां मिलकर एक ऐसा ज़बर्दस्त मिश्रण तैयार करती हैं, जो आपके भीतर छुपे नेतृत्व के हुनर को उभारता है।
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