स्वयं को और दूसरो को जानने की कला "संबंध निजी हों या व्यावहारिक, व्यावसायिक हों या औपचारिक, आपस में मधुर व गहरे तभी रहते हैं जब दोनों में नजदीकियां हों, और नजदीकियां बनती हैं एक-दूसरे के विश्वास से और विश्वास के लिए जरूरी है एक-दूसरे की सही समझ, परख व पहचान। स्वयं को और दूसरों को पहचानने के कई माध्यम हैं। फिर वह मनोविज्ञान हो या आदतें, ज्योतिष हो या हस्त रेखा विज्ञान, बॉडी लग्वेज यानी शारीरिक भाषा हो या अंग लक्षण, आपका कार्य हो या पहनावा, आपकी पसंद-नापसंद हो या फिर आपका जन्मांक या नामाक्षर, आपके शौक-व्यवहार आदि कई माध्यमों से हम स्वयं को और दूसरों को पहचान सकते हैं। इन सबको जानने के लिए आपको न तो मनोवैज्ञानिक होने की जरूरत है न ही कोई ज्योतिषी होने की। यह पुस्तक इन्हीं माध्यमों के जरिए स्वयं को और दूसरों को पहचानने में आपकी मदद करेगी। उम्मीद है, पहचानने की कला सीखकर आप न केवल स्वयं संभल सकते हैं बल्कि दूसरों को, अपने रिश्तों एवं संबंधों को भी सही ढंग से संभाल सकते हैं।"