Tantra Sadhanae By Dr.Narayan Datt Shrimali
तंत्र साधनाए
तंत्र साधनाए व सिद्धियाँ भी कल्याणकारी होती है, ऐसा लाखो लोगो का विश्वास है। यह शताब्दियो से प्रचलित है। साधक, साधु, संत, सन्यासी, योगी इस विद्या को समय समय पर मानव मात्र की उन्नति के और सुख शांती के लिये सिद्ध करते रहे है।
इस पुस्तक में तारा महाविद्या साधना, अन्नपूर्णा सिद्धि और बटुक भैरव प्रयोग से लेकर ब्राह्माण्ड साधना, महाकाली साधना जैसी अनेक विधिया दी गयी है।
तंत्र-शास्त्र में इसी शक्ति की आराधना की जाती है। तंत्र-शास्त्र से तात्पर्य उन गूढ़ साधनाओं से है जिनके द्वारा इस संसार को संचालित करने वाली विभिन्न दैवीय शक्तियों का आव्हान किया जाता है। तंत्र-शास्त्र में विभिन्न पूजा विधियों का इस प्रकार से प्रयोग किया जाता है जिससे वह साधक के मन, मष्तिष्क एवं व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। जिससे उसमें सद्गुणों का विकास हो एवं वह जीवन के परम पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की क्रमिक प्राप्ति कर सके।
तंत्र साधना के समय उच्चारित मंत्र, विभिन्न मुद्रायें एवं क्रियाएं अत्यंत व्यस्थित, नियमित एवं नियंत्रित तरीके से होती हैं। इसमें जरा सी भी चूक होने से परिणाम अत्यंत नकारात्मक हो सकते हैं अत: इस प्रक्रिया के समय साधक को अत्यंत सजग एवं सचेत रहने की आवश्यकता होती है।
किसी भी साधक के लिए तंत्र साधना को यंत्रवत करना असंभव है। इस प्रकार तंत्र साधना के द्वारा साधक में जागरूकता, सजगता, चेतना एवं नियमबद्दता आदि गुणों का विकास किया जाता है।
आधुनिक युग में कुछ लोगों ने तंत्र साधना का दुरुपयोग करके तंत्र साधना की विश्वसनीयता के बारे में सवाल खड़े कर दिए हैं। परंतु शास्त्रों में वर्णित तंत्र साधनाएँ इस प्रकार की साधनाओं से पूर्णतः भिन्न हैं। तंत्र में श्मशान, उजाड़ स्थान आदि को इसलिए चुना जाता है जिससे कि साधक का जीवन के अंतिम सत्य से साक्षात्कार हो सके तथा उसे ईश्वर की सार्वभौमिकता एवं जीवन की निरर्थकता का आभास हो।
इस प्रकार सच्चा तांत्रिक एक सात्विक व्यक्ति होता है एक योगी होता है जो कि ईश्वर के दैवी रूप की साधना करता है। तथा इस तंत्र साधना का उद्देश्य साधक मे सद्गुणों का विकास करना, उसे सांसारिक मोह माया से दूर करना एवं अध्यात्म की ओर अग्रसर करना है।
तंत्र मे ईष्ट का अर्थ ज्योतिष मे प्रयुक्त ईष्ट से भिन्न है। ज्योतिष मे ईष्ट का अर्थ सुकर्मों में वृद्धि एवं आशीर्वाद प्राप्त करना है। जबकि तंत्र में ईष्ट का अर्थ बुराई एवं कष्ट का अंत है। तंत्र शास्त्र की मान्यता है कि बुराई एवं कष्ट अविद्या का परिमाण है। तथा इस अविद्या, बुराई एवं कष्टों से मुक्ति शक्ति की आराधना से ही मिल सकती है।
शक्ति का शाब्दिक अर्थ है दैवीय शक्ति, उन्नति एवं बल। इस शक्ति को भगवती भी कहा जा सकता है जिसका अर्थ भी उन्नति, धन, बल एवं यश प्रदान करना है।
|