Ve Din Ye Din
वे दिन ये दिन - भारती राय
अनुवाद: सुशील गुप्ता
उन्नीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी तक की दूरी तय करतीं इन पांच पीढ़ियों में आम घरों की स्त्रियों की ज़िंदगी भी प्रकारान्तर से मौजूद है। कथा का ऐसा विस्तृत फलक असाधारण स्त्रियों की असाधारण कहानी नहीं बुनता; बल्कि वह बड़ी सुथराई से पाठकों के आगे बंगाल के मध्यवित्त परिवारों की सामान्य, प्रायः घर-गृहस्थी चलाने और बच्चे पालने तक ही सीमित–केंद्रित रहीं पांच महिलाओं–लेखिका की परनानी, नानी, मां, स्वयं अपनी और अपनी बेटियों–की ज़िंदगियों के ताने-बाने को एक पूरी चादर की तरह फैला देता है।
‘वे दिन ये दिन’ एक बुद्धिजीवी स्त्री की आत्मकथा है, जो मध्यवित्त संयुक्त परिवार की मिठास और तल्ख़ियों को क़बूल करते हुए अपने लिए सार्थक राह गढ़ती है। यह आत्मकथा पिछली पीढ़ियों और वर्तमान पीढ़ी को निष्पक्ष ढंग से तोलने की कोशिश है और आधुनिक समय में बढ़ते हुए क़दमों का अभिनंदन है। पाठकों को यह किताब दिशा और दृष्टि देगी।